1 लाख छिद्रों वाला शिवलिंग कैसे बना
वैसे तो भारत में बहुत सारे शिव मंदिर है, लेकिन कुछ शिव मंदिर ऐसे भी है – जैसे 1 लाख छिद्रों वाला शिवलिंगजो अत्यंत अद्भुत और रहस्यमय है। भारत के लगभग मध्य में स्थित छत्तीसगढ़ राज्य के खरौद में लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर स्थापित है, इसे “छत्तीसगढ़ का काशी” भी कहा जाता है।
यह मंदिर बिलासपुर शिवरीनारायण रोड पर जांजगीर-चांपा नामक जिले में बिलासपुर से लगभग 62 किलोमीटर की दूरी पर खरौद नामक गांव में स्थित है। यह मंदिर पूर्वाभिमुखी है। इसमें गर्भगृह, अंतराल एवं मंडप तीन अंग है। अंतराल एवं मंडप मूल मंदिर परवर्ती काल में पुनर्संरचित हैं तथा मराठा कालीन है। गर्भगृह मूलवत है। किंतु जीर्णोद्धार के कारण यह परिवर्तित स्थिति में अवशिष्ट है।
मूल मंदिर का निर्माण दक्षिण कौशल के सोमवंशी राजाओं के राजत्व काल में हुआ था। कहा जाता है कि पांडू वंश के संस्थापक इंद्रबल जिन्हें भरतबल के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने ही खरौद के लक्ष्मणेश्वर/लखनेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर की भित्ति में जड़े हुए प्रस्तर-अभिलेख में उनके पुत्र ‘ईशानदेव’ का नाम उल्लेखित है।
प्रवेश द्वार की द्वारशाखायें एवं मंडप के स्तंभ उच्चस्तरीय अलंकरण से युक्त है। जिन पर राम कथा के अनेक प्रसंग एवं दृश्य उकेरे गए हैं। रामकथा से संबंधित दृश्यों में अशोक वाटिका में सीता तथा हनुमान, बालिवध आदि नाटकीयता का अंकन है, जो कि सराहनीय हैं।
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1 लाख छिद्रों वाला शिवलिंग मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है । इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र है। जिसकी वजह से इसे लक्ष्य लिंग भी कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इन छिद्रों में एक ऐसा भी छिद्र है, जो पाताल गामी है। कहा जाता है कि इस छिद्र में जितना भी जल डालो वह उसे सोख लेता है। साथ ही एक ऐसा भी छिद्र है जिसमें हमेशा जल भरा रहता है, उसे अक्षय छिद्र के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान श्री राम द्वारा लंकापति रावण का वध होने के बाद लक्ष्मण जी ने उनसे इस मंदिर की स्थापना करवाई थी। इसलिए ही इस मंदिर को लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा करने से ब्रह्महत्या के दोष का भी निवारण हो जाता है।
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान राम ने रावण का वध किया था तब ब्रह्म हत्या से मुक्ति पानी हेतु राम – लक्ष्मण ने शिव के अभिषेक का प्रण लिया था। जिसके लिए लक्ष्मण ने सभी तीर्थों से जल एकत्रित किया था जब मैं शिवरीनारायण से जल लेकर निकले तब रोग ग्रस्त हो गए थे अतः उन्होंने रोग से मुक्ति हेतु भगवान शिव की उपासना की थी।
लक्ष्मण जी ने जब उस लक्ष्य लिंग की पूजा की और वह पूर्णता स्वस्थ हो गए इसलिए भी इस शिवलिंग को लक्ष्मणेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। भगवान श्रीराम ने यहां पर ही खर व दूषण राक्षसों का वध किया था, इस लिए ही इस स्थान का नाम खरौद पड़ा।