आखिर कैसे हुई छत्तीसगढ़ में मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ की स्थापना।
विश्वप्रसिद्ध 108 शक्तिपीठो में से एक प्रसिद्द शक्तिपीठ, जहाँ देवी का दन्त गिरा था | जो छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिला में स्थित है, माँ दंतेश्वरी माता| यह तांत्रिको की स्थली है, तथा आदिवासियों की कुलदेवी है| आज हम बताने जा रहे है, इस अद्भुत शक्तिपीठ के बारे में |
छत्तीसगढ़ में मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ की स्थापना
बस्तर पर काकतीय वंश के शासकों ने 1300 से 1900 संवत् ईस्वी तक शासन किया। संभवतः बस्तर पर सबसे अधिक समय तक राज्य करने वाला काकतीय वंश ही रहा है किवदंती है कि काकतीय वंश के पूर्वज महाभारत कालीन पांडव थे।
गुरु द्रोणाचार्य की शिष्य परंपरा के अनुसार उन्होंने अपने वंश का नाम काकतीय रखा। संस्कृत में काक को द्रोण कहा जाता है। अतः द्रोणी परंपरा ही काकतीय कहलायी। संस्कृत में हस्ती को दंतीमा कहा जाता है इसलिए हस्तिनापुर की देवी हंसतेश्वरी को दंतेश्वरी मां कहा गया।
काकतीय सूर्यवंशी क्षत्रिय रहे। ऐसी किवदंती है कि काकतीय शासक अन्नम देव ने अपने अधिष्ठात्री देवी दंतेश्वरी के साथ बस्तर पर विजय अभियान चलाया था। देवी ने अन्नम देव को वस्त्र देकर कहा था कि जब तक यह वस्त्र तुम्हारे पास रहेगा तब तक तुम अजेय रहकर बढ़ते चले जाओगे।
ऐसा कहा जाता है कि अन्नम देव को दिए गए वस्त्र का अपभ्रंश होकर बस्तर हो गया। अन्नम देव ने पूरे बस्तर पर विजय प्राप्त की तथा अपनी राजधानी बड़े डोंगर नामक स्थान को बनाया। बड़े डोंगर मे राजा अन्नम देव का राजतिलक हुआ तथा जिस पत्थर पर राजतिलक हुआ उसे पखना गादी के नाम से जाना जाता है।
बड़े डोंगर बस्तर का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थल रहा है। बड़े डोंगर राष्ट्रीय राजमार्ग रायपुर – जगदलपुर के मध्य फरसागांव से 15 किलोमीटर दक्षिण की ओर स्थित है। यह बस्तर की प्राचीन राजधानी थी। यहां पर दंतेश्वरी देवी का प्राचीन मंदिर मावली डोंगरी नामक पहाड़ी पर स्थित है।
विश्व के 52 शक्तिपीठों में से एक दंतेश्वरी का मंदिर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में डंकनी- शंकनी नदी के संगम तट पर है। मंदिर स्थापना के संबंध में एक अन्य कहानी राजा अन्नमदेव से जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि बस्तर के काकतीय राजा अन्नम देव वारंगल से यहां आए थे।
उन्हें दंतेश्वरी देवी का वरदान मिला था। कहा जाता है कि अन्नम देव को माता ने वर दिया था कि जहां तक वे जाएंगे उनका राज्य वहां तक फैलेगा। शर्त ये थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना था। जनश्रुतियों के अनुसार अन्नम देव ने चलना शुरू किया और वे कई दिन और रात चलते रहे।
वे शंखिनी और डंकिनी नंदियों के संगम पर पहुंचे। यहां उन्होंने नदी पार करते समय, पीछे आती हुई माता की पायल की आवाज महसूस नहीं की। इस पर राजा वहीं रूक गए और माता के रूक जाने की आशंका से उन्होंने पीछे पलटकर देखा। माता तब नदी पार कर रही थी।
राजा के रूकते ही मैय्या भी वही रूक गई और उन्होंने आगे जाने से इंकार कर दिया। दरअसल नदी के जल में डूबे पैरों में बंधी पायल की आवाज पानी के कारण नहीं आ रही थी और राजा इस भ्रम में आ गए कि पायल की आवाज नहीं आ रही है मतलब शायद मैय्या नहीं आ रही हैं और यह सोचकर वह पीछे पलट गए।
वचन के अनुसार मैय्या के लिए राजा ने शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम पर एक सुंदर घर/मंदिर बनवा दिया। तब से देवी दंतेश्वरी वहीं स्थापित हैं। दंतेश्वरी मंदिर के पीछे बगिया में यह पदचिन्ह आज भी मौजूद है जहां लोग नियमित रूप से पूजा- अर्चना करते हैं।
ऐसी अद्भुत मूर्ति छत्तीसगढ़ के किसी भी मंदिर में नहीं है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहां मेला भरता है तथा ज्योति कलश जलाए जाते हैं। आदिवासियों के मध्य आज भी दंतेश्वरी माई के प्रति अगाध श्रद्धा व विश्वास है।