बहादुर कलारिन की माची
छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के अंतर्गत अनेकों प्राचीन स्मारक पाए गए हैं। इन स्मारकों में एक प्राचीन स्मारक धमतरी बालोद मार्ग रोड पर बालोद से 25 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम चिरचारी में स्थित है जिसे बहादुर कलारिन की माची के नाम से जाना जाता है।
बहादुर कलारिन की माची संरचना
यह स्मारक 6 प्रस्तरों के स्तंभों पर आधारित है, जिसकी छत भी विशाल प्रस्तर से निर्मित है। वास्तव में यह एक मढ़ी की मंडपनुमा संरचना है, जो कि जीर्णोशीर्ण अवस्था में है। ऐसा संरचना एक समाधि स्थल है जो कि बहादुर कलारिन को समर्पित कर दी गई है।
कलारिन की माची प्रचलित गाथा
उक्त संबंध में एक गाथा प्रचलित है, जो इस प्रकार है – इस ग्राम में एक कलार सुंदरी रहती थी जो अकेली थी। एक दिन एक हैहयवंशी राजा अपने बाज के साथ शिकार खेलने आया तथा उसका बाज इस सुंदरी के घर पर आ गया जिसका पीछा करते हुए राजा भी यहां आ गया तथा कलार सुंदरी को देखकर मोहित हो गया एवं उससे गंधर्व विवाह कर लिया। कुछ समय पश्चात उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम छछन छोटा रखा गया जिसका अर्थ होता है बाज पुत्र।
बड़ा होकर उक्त युवक बलवान एवं योद्धा निकला। उसने अपनी मां से अपने पिता के बारे में पूछा तो उसने राजा का नाम बताया जिसके बाद से राजाओं से उसे घृणा हो गई और वह आसपास के सभी राजाओं जमींदारों को पराजित कर उनकी पत्नियों एवं पुत्रियों को बंदी बनाकर उनसे धान आदि कुटवाता था। यहां अभी मात्र 160 कड़ियां मौजूद है, जिनमें धान कूटा जाता था।
बहादुर कलारिन ने इन स्त्रियों को छोड़ देने का अनुरोध पुत्र से किया जिसे पुत्र ने अस्वीकार कर दिया, जिसके पश्चात माता ने पुत्र की हत्या कर स्वयं आत्महत्या कर ली।
अचंल सोरर मे प्रचलित
यहां एक मंदिर में बाजपुत्र की मूर्ति स्थापित है, जिसकी पूजा अभी भी की जाती है तथा बहादुर कलारिन स्मारक भी नदी के किनारे स्थित है। यह कथा छत्तीसगढ़ के एक अचंल सोरर मे प्रचलित थी। जिसमें बहादुर नाम की कलारिन (शराब बेचनेवाली) राजा के प्रेम में पड़ती है। लेकिन राजा उसके प्रेम का प्रतिदान नहीं देता।
उसका बेटा छछन इडिपस कामप्लेक्स के साथ बडा़ होता है। वह एक के बाद एक 126 औरतों से विवाह करता है मगर उन्हे छोड़ता चलता है। किसी भी औरत से न पटने का कारण छछन के मन मे अपनी मां के प्रति दबी काम वासना थी।
क्यों की आत्महत्या
जब वह मां से अपनी इच्छा व्यक्त करता है तो वह सदमे में आ जाती है, बहुत क्षुब्ध होती है। पहले तो वह सारे गाँव से कहती है कि कोई छछन को पीने को एक घूट पानी भी न दे। फिर स्वय उसे कुए मे ढकेल देती है और खुद भी उसमे कूदकर आत्महत्या कर लेती है। आधुनिक युग मे व्याख्यायित इडिपस कामप्लेक्स का इस लोककथा मे समन्वय देखकर आश्चर्य होता है।
प्रचलित गीत
गीत : ‘अईसन सुन्दर नारी के ई बात, कलारिन ओकर जात…’, ‘चोला माटी का हे राम एकर का भरोसा…’, ‘होगे जग अंधियार, राजा बेटा तोला…’
बहादुर कलारिन बाई जी का नाम एक देवी की तरह लिया जाता है वे पुरे छत्तीसगढ़ के साथ कलार समाज के पौराणिक इतिहास का हिस्सा तो है ही साथ ही छत्तीसगढ़ के इतिहास में भी उनका नाम बड़े बड़े अक्षरों में अंकित है।